10 साल से ज़्यादा पुराना विवाद
ये आईपीएल फ्रेंचाइजी विवाद पिछले 10 साल से भी ज़्यादा समय से चल रहा था। बीसीसीआई ने इस पर कई बार प्रतिक्रिया देने की कोशिश की, लेकिन उनका कोई आधिकारिक बयान (ऑफिशियल कमेंट) नहीं आया।
बीसीसीआई ने कोच्चि फ्रेंचाइजी को 2011 में सिर्फ एक सीज़न के बाद खत्म कर दिया था। बोर्ड ने टीम पर कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने (कॉन्ट्रैक्ट ब्रीच करने) का आरोप लगाया था क्योंकि उन्होंने एग्रीमेंट के तहत आवश्यक बैंक गारंटी समय पर जमा नहीं की थी। वहीं, फ्रेंचाइजी बीसीसीआई को भुगतान नहीं कर पाई थी क्योंकि टीम के मालिकों के बीच ही आंतरिक विवाद (इंटरनल कॉन्फ्लिक्ट) हो गया था।
आर्बिट्रेशन और कोर्ट का फैसला
यह मामला आर्बिट्रेशन में गया, और 2015 में आर्बिट्रेटर ने फैसला कोच्चि टस्कर्स के पक्ष में दिया। इस डिसीजन के मुताबिक, बीसीसीआई को कुल ₹538 करोड़ देने का आदेश मिला, जिसमें से ₹384 करोड़ केरला क्रिकेट एसोसिएशन को और ₹153 करोड़ रनवर स्पोर्ट्स को देने थे, जो कोच्चि फ्रेंचाइजी के मालिक थे।
बीसीसीआई इस आर्बिट्रल अवार्ड से खुश नहीं था और उन्होंने ट्राइबनल के फैसले को कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया। लेकिन बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने आर्बिट्रेटर के डिसीजन को सही ठहरा दिया।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 34 के तहत कोर्ट का अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिसडिक्शन) बहुत लिमिटेड है। बीसीसीआई का यह कोशिश करना कि वो विवाद के मेरिट्स पर चर्चा करें, धारा 34 के दायरे के खिलाफ है। कोर्ट ने साफ किया कि बीसीसीआई की असंतुष्टि जो सबूतों और मेरिट्स की फाइंडिंग्स को लेकर है, वो आर्बिट्रियल अवार्ड को चुनौती देने का वैध आधार नहीं बन सकती।
फ्रेंचाइजी का इतिहास और परिणाम
ये फ्रेंचाइजी, जिसे 2010 में ₹1550 करोड़ में खरीदा गया था, अपने वार्षिक भुगतान (एनुअल पेमेंट) में चूक गई थी, जिसके बाद बीसीसीआई ने 2011 में उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया था। लेकिन फ्रेंचाइजी ने बीसीसीआई के खिलाफ केस जीत लिया और कोर्ट ने बोर्ड को लगभग ₹550 करोड़ का भुगतान करने का आदेश दिया।
ये बीसीसीआई के लिए एक बड़ी वित्तीय (फाइनेंशियल) चुनौती है।
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